प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति हेतु बॉर्डर पर किया महायज्ञ
शरदपूर्णिमा पर भगवान शिव पूजा का विशेष महत्व है : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराजअलीगढ़। देश की विख्यात एवं धार्मिक यात्राओं में एक आदि कैलाश यात्रा अपने प्राकृतिक दृश्य एवं सकारात्मक ऊर्जा के लिए जानी जाती है। हर साल सैकणो की संख्या में शिवभक्त आदि कैलाश यात्रा में महादेव के दर्शन हेतु जाते हैं परंतु इस वर्ष मौसम के खराब होने की वजह से यात्रा में गये शिवभक्तों को भारी समस्या देखने को मिल रही है। जहां एक ओर अनवरत बारिश का प्रकोप एवं पहाडों का स्खलन लगातार 3 दिन से देखने को मिल रहा है वहीं दूसरी ओर आदि कैलाश यात्रा पर शहर के धर्मगुरु महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज के सानिध्य में निकले 15 सदस्यीय जत्थे ने नेपाल बॉर्डर स्थित उत्तराखण्ड राज्य के धारचूला में देश की सीमा सुरक्षा, भारत चीन संबंध एवं देश के विभिन्न प्रान्तों में भारी बारिश एवं अन्य आतंकी गतिविधियों के कहर से निजात हेतु शरद पूर्णिमा के अवसर पर भगवान शिव के स्वरूप हिमालय की श्रेणियों में हवन यज्ञ किया।
यात्रा में गये महाराज जी के शिष्य आचार्य गौरव शास्त्री ने बताया कि बुधवार से प्रारंभ हुई आदि कैलाश यात्रा चम्पावत एवं टनकपुर के रास्ते होती हुई धारचूला पहुंच चुकी है जहां प्रशासन के रेड अलर्ट लगाने के बाद आगे की यात्रा को मौसम के ठीक होने तक रोक दिया है। यात्रा के रास्ते में पहाड़ों के स्खलन एवं भारी बारिश की वजह से परिवहन भी ठप पड़ा हुआ है। मौसम संबंधी समस्या एवं देश के सीमा साझा करने वाले अन्य देशों से अच्छे संबंधों की कामना करते हुए जत्थे के सभी लोगों ने शरद पूर्णिमा पर्व के शुभ अवसर पर रविवार को भगवान शिव को हवन यज्ञ के माध्यम से प्रसन्न किया इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में आश्विन मास की शरद पूर्णिमा श्रेष्ठतम मानी गई है क्योंकि इस दिन महालक्ष्मी की आराधना करके अपने इष्ट कार्य को तो सिद्ध किया ही जा सकता है साथ ही राधा-कृष्ण एवं भगवान शिव की आराधना के लिए भी यह पूर्णिमा सर्वोपरि मानी गई है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन चंद्र भगवान तथा शंकर भोलेनाथ की पूजा व मंत्र जाप सायंकाल के समय करके केसरयुक्त दूध या खीर का भोग लगाया जाता है चंद्रमा की सारी कलाएं रात्रि के समय इस धरती पर बिखरती हैं, इसलिए दूध या खीर चंद्रमा को भोग के रूप में खिलाते हैं, जिससे चंद्रमा की अमृतमय किरणें इस खीर पर पड़ती हैं जो कि औषधीय गुणों से भरपूर होती है एवं मनुष्य की दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों बाधाओं को दूर कर सुख-शांति का जीवन प्रदान करती है।
स्वामी जी ने आदि कैलाश यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि अति दुर्गम आदि कैलाश यात्रा के प्रणेता एवं देवाधिदेव महादेव के दर्शन कर पाना अपनी मर्जी में नहीं है भगवान शिव की कृपामात्र से ही उनके पास जाना सम्भव हो पाता है। अखिल ब्रह्माण्डनायक तीनों लोकों के मालिक देवाधिदेव के दर्शन अनेकों ऋषि मुनियों ने भी नहीं कर पाए परंतु हमारे बाबा महज एक लोटे जल से प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान दे सकते हैं। हवन में पूर्णाहुति कर जत्थे के सभी सदस्यों ने भगवान शिव से सुंदर एवं सहज दर्शन की मनोकामना मांगी। इस अवसर पर बद्रीनाथ के तपस्वी संत स्वामी अदृश्यनानंद जी महाराज,तेजवीर सिंह,शिब्बू अग्रवाल,प्रमोद वार्ष्णेय,शशि वार्ष्णेय,प्रमोद वर्मा,अंकुश उपाध्याय,किशन बाबा, कपिल ठाकुर, दीपेश,शर्मा,ब्रजेन्द्र वशिष्ठ,अजीत आदि लोग उपस्थित रहे।


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